कबाड़, डीजल और कोयला चोरों का संगठित गिरोह सक्रिय, मुखबिर तंत्र फेल

 

जेल से छूटने के बाद चालू है शातिर चोरों का काम अपराधी गिरोहों को किसका मिल रहा संरक्षण?

कोरबा :

लम्बे समय तक प्रतिबंध के बाद कोरबा जिले में कबाड़ का कारोबार फिर से शुरू हो गया है। छोटे-बड़े मामलों की धरपकड़ के बीच कबाड़, डीजल और कोयला चोरों का संदिग्ध गिरोह भी सक्रिय हुआ है। गिरोहों की सक्रियता के आगे पुलिस का अपना मुखबिर तंत्र भी फेल-सा लग रहा है, क्योंकि चोरी का कबाड़ खरीदकर उसे परिवहन कर जिले से बाहर ले जाने का एक भी बड़ा मामला अब तक पकड़ में नहीं आया है। छोटे-छोटे 2-3 मामले जरूर पुलिस ने पकड़े हैं, किन्तु जारी गोरखधंधा के मुकाबले ये नगण्य है। इसीलिए यह सवाल भी उठ रहा है कि इन अपराधी गिरोहों को किसका संरक्षण प्राप्त है?
 
कोरबा जिले में कबाड़ व्यवसाय से प्रतिबंध हटने के बाद से ही यह कारोबार अपने उफान पर है। इसके साथ ही जिले में चोरी की वारदातें भी बढ़ी हैं। कबाड़ का कारोबार में लगे लोगों से यह अपेक्षा बेमानी है कि वे चोरी का लोहा, तांबा, पीतल या अन्य सामान ना खरीदते हों। एक नंबर का कबाड़ के साथ दो नंबर का कबाड़ खरीदने का काम आखिर कबाड़ी न करे तो और कौन करेगा? पुलिस अधिकारियों द्वारा अक्सर कहा जाता है कि कबाड़ियों को चोरी का माल नहीं खरीदने की सख्त हिदायत दी गई है, किन्तु यह हिदायत कबाड़ गोदाम के किसी कोने में पड़ी रहती है। एसईसीएल के खदानों से डीजल और कोयला की चोरी भी बदस्तूर हो रही है। एक संगठित गिरोह बनाकर इन काले कारनामों को बेखौफ अंजाम दिया जा रहा है। गिरोह के सदस्य जेल से छूटने के बाद काम को अंजाम दे रहे हैं। यह कहना अतिश्योक्ति होगी कि कुछ लोगों को गिरफ्तार कर जेल भेजने के बाद जिले में कबाड़, डीजल और कोयला चोरी की वारदातों पर अंकुश लग चुका है।
 
यह संगठित गिरोह का ही कमाल है कि हाल ही में इंडियन ऑयल के डिपो से निकलने वाले डीजल-पेट्रोल की, डिपो से चंद कदम दूर एक यार्ड में लंबे समय से चोरी हो रही थी। बालको के एक नामचीन शख्स के द्वारा इस कार्य को अंजाम देने की चर्चा सुर्खियों में रही है, लेकिन उसके गिरेबां तक पुलिस के हाथ नहीं पहुंच सके हैं। एसईसीएल की खदानों से सी आई एस एफ और निजी सुरक्षा गार्डों के होते हुए डीजल और कोयला पार हो रहे हैं।
कोरबा के चालू और बंद पड़े तथा निर्माणाधीन से लेकर निर्माण के बाद प्रारंभ होने के इंतजार में लगे निजी और शासकीय संयंत्रों, उपक्रमों को भी चोर गिरोह के लोग अपना निशाना बना रहे हैं। इन कारनामों पर पूरी तरह नकेल कसने की कोशिशें अब तक नाकाफी साबित हुई हैं। यह जरूर है कि जब पुलिस विभाग के मुखिया बदलते हैं तब उनके तेवर को देखकर कुछेक कार्यवाही कर दी जाती है, किंतु अनेक थाना क्षेत्र अपने इलाके में इस तरह के कारोबार पर बंदिश लगना बताकर या तो कार्यवाही से परहेज करते हैं या फिर गिरोह के सदस्य इन्हें छकाने के साथ मुखबिरों के माध्यम से गुमराह करने में सफल होते हैं। कोरबा जिले के खदानों से लेकर उद्योग, संयंत्र और पिछले कुछ वर्षों से विद्युत विभाग के चालू और बंद ट्रांसफार्मर, हाईटेंशन तार तक चोरों के निशाने पर रहे हैं। चोरों की हिमाकत इतनी है कि वे चालू लाइन से भी अपने मतलब का सामान चोरी करने से गुरेज नहीं करते। सवाल जायज है कि आखिर चोरों के द्वारा चुराए गए तांबा, पीतल, एल्यूमिनियम से निर्मित उपकरण के अलावा काटकर चोरी किए गए एंगल, रोलर सहित लोहा निर्मित अन्य सामग्रियां आखिर किसके पास खपाए जा रहे हैं? दरअसल पुलिस की नाक के ठीक नीचे से अपनी दुकानदारी चला रहे चुनिंदा कबाड़ी इन चोरों को शह देकर इनसे चोरी कराने के बाद इन महंगे सामानों को कौड़ियों के भाव खरीदकर खपा रहे हैं। प्रतिस्पर्धा, मनमुटाव और कभी-कभी मुखबिरी के कारण कुछ मामले जरूर पकड़ में आ जाते हैं लेकिन विभाग के कुछ लोगों की मुखबिरी से यह संगठित गिरोह और उसके चेले दबाव बढ़ने पर भूमिगत हो जाते हैं और कुछ दिन शांत रहने के बाद काम धड़ल्ले से शुरू हो जाता है। जैसा इन दिनों हो रहा है। इन सबके बीच एक बड़ा सवाल यह है कि चोरों के ये संगठित गिरोह किसके संरक्षण या शह पर अपराधों को अंजाम दे रहे हैं? पुलिस महकमा का हाथ किसने बांध रखा है? और यह भी की पुलिस इतना लाचार क्यों हो गई है?

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