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पुलिस निरीक्षक की याचिका पर उच्च न्यायालय ने अंतरिम राहत प्रदान करते हुए विभागीय जांच की अग्रिम कार्यवाही पर अंतरिम रोक का आदेश पारित किया

बिलासपुर

मामले के तथ्य के अनुसार, निरीक्षक राहुल तिवारी , जो सिरगिट्टी थाना में पदस्थ थे , तब कार्य मे ढील बरतने के एक मामले में विभागीय जांच संस्थित की गई थी , उक्त जाँच में याचिकाकर्ता को पुलिस अधीक्षक बिलासपुर के द्वारा वर्ष 2017 में निंदा की सज़ा चेतावनी स्वरूप प्रदान की गई थी ।

इस लघु शास्ति के विरुद्ध कोई अपील न होने की दशा में यह अंतिम हो गया ।
वर्ष 2019 में पुलिस महानिरीक्षक बिलासपुर के द्वारा उक्त लघु शास्ति को पुनर्विलोकन कर अपास्त करते हुए इस निर्देश के साथ पुलिस अधीक्षक बिलासपुर को अंतरित की गई कि याचिकाकर्ता के को दी गयी सज़ा अपर्याप्त है तथा उसके विरुद्ध दीर्घ शास्ति अधिरोपित किये जाने नियमित विभागीय जांच पुनः संस्थित करें ।

उक्त आदेश के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने अमियकान्त तिवारी, भारत गुलाबानी और ग़ालिब द्विवेदी के ज़रिए याचिका प्रस्तुत कर इस आदेश और संस्थित जांच कार्यवाही को इस आधार पर चुनौती दी की , पूर्व में पारित आदेश का दो वर्ष और छह महीने बाद पुनर्विलोकन नही किया जा सकता और यह पुलिस महानिरीक्षक जो अपीलीय अधिकारी भी है, के क्षेत्राधिकार से परे है , किसी भी जांच कारवाही में पारित आदेश को ६ माह के भीतर ही पुनर्विलोकित किया जा सकता है ।
चुकी पुलिस रेगुलेशन में इस तरह के आदेश पारित किए जाने का कोई परिसीमा ज्ञात नही किन्तु सिविल सर्विसेज रूल में विहित परिसीमा जो कि ६ माह की है वह अधिरोपित हो जाती है ।

याचिका की सुनवाई उच्च न्यायालय की एकल पीठ न्यायमूर्ति श्री गौतम भादुड़ी के द्वारा की गई और याचिका को अग्रिम कार्यवाही के लिए सुनवाई करते हुए , याचिकाकर्ता के विरुद्ध संस्थित विभागीय जांच की आगामी कार्यवाही पर रोक लगाने का अंतरिम आदेश पारित किया गया ।

शासन को मामले में जवाब का अवसर प्रदान किया गया है ।

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