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मां बनाती थी देसी दारू, बेटे से लोग मंगाते थे नमकीन, एक दिन ऐसे बन गया यही बेटा IAS अफसर

महाराष्ट्र

आज जिसकी कहानी हम आपको बताने जा रहे हैं वो आदिवासी भील समुदाय के उस युवा की, जिसने तमाम संघर्षों को हराकर शानदार जीत हासिल की है। इनका नाम डॉ. राजेंद्र भरुड़ है और ये हैं UPSC साल 2013 बैच के IAS अफसर हैं। आज डॉ. राजेंद्र भरुड़, छात्रों और कई युवाओं के लिए मिसाल बनकर उभरे हैं। डॉ. राजेंद्र भरुड़ ने पैदा होने से पहले ही अपने पिता को खो दिया था, तो आप इस बात से समझ जाना चाहिए कि उनके पैदा होने के बाद उनको किन मुश्किलों का सामना करना है। डॉ. राजेंद्र भरुड़ के पिता की मौत के बाद उनकी मां देशी दारू बनाने लगी थी और इसी से उन्होंने उन्हें पढ़ाया-लिखाया भी।
पैदा होने से पहले राजेंद्र ने पिता को खो दिया था, मां देसी दारू बनाती थी
इन्हीं हालातों के बीच डॉ. राजेंद्र भरुड़ ने भी दिन रात की मेहनत से वो मुकाम हासिल कर लिया, जिसका सपना लाखों युवा देखते हैं। डॉ. राजेंद्र भरुड़ साल 1988 को महाराष्ट्र के धुले जि‍ले के आदिवासी भील समुदाय में हुआ था। डॉ. राजेंद्र भरुड़ के मां ने इंटरव्यू के दौरान बताया था कि जब वो उनके पेट में थे तभी उनके पिता का निधन हो गया था। उस वक्त कई लोगों ने उन्हें ये सलाह दी गई कि वो गर्भपात करा ले, क्योंकि पहले से ही उन पर तीन बच्चों को पालने का पूरा भार आ गया था, लेकिन वो मानी नहीं और उनके घर में डॉ. राजेंद्र भरुड़ का जन्म हुआ।
वही डॉ. राजेंद्र की मां आगे बताती हैं कि जब वो 2-3 साल का था तो उन्होंने देसी दारू बनानी शुरू कर दी थी। मैं दारू बनाकर बेचती थी। जब डॉ. राजेंद्र भरुड़ थोड़े बड़े हुए तो वो वहीं बैठकर पढ़ाई किया करते थे। लोग इससे दारू के साथ नमकीन वगैरह लाने को कहते थे, लेकिन मैं मना कर दिया करती थी कि वो नहीं जाएगा, वो अभी पढ़ रहा है। मां ने आगे बताया कि उस समय बहुत खराब पर‍िस्थ‍ितियां थी। कई बार तो कुछ खाने को भी नहीं मिलता था। सूखी रोटी खा खाकर दिन निकाले हैं। एक झोपड़ी में रहकर किसी तरह कम कमाई में खर्च चलता था, लेकिन मेरा बेटा दिनभर पढ़ाई करता था।
शराबी लोग राजेंद्र के मुंह में डाल देते थे शराब की बूंदे
उनकी मां बताती है कि उसी शराब के पैसे से उनकी किताबें आया करती थीं। वहीं अपने एक इंटरव्यू के दौरान डॉ. राजेंद्र भरुड़ ने बताया कि बचपन में कई बार कुछ शराबी लोग उनके मुंह में शराब की कुछ बूंदे डाल दिया करते थे। बार-बार ऐसा होता रहा तो उन्हें इसकी आदत सी हो गई थी। अक्सर उन्हें सर्दी जुकाम आदि होने पर दवा की जगह शराब ही पिलाई जाती थी। बड़ा हुआ तो सबसे ज्यादा मुझे लोगों का ये ताना चुभता था जब वो कहते थे कि शराब बेचने वाले का बेटा शराब ही बेचेगा। मैंने तब ही ठाना था कि एक दिन इस बात को सिरे से झुठला दूंगा।
इतनी मजबूरी के बाद भी राजेंद्र ने की MBBS की पढ़ाई
डॉ. राजेंद्र भरुड़ आगे बताते हैं कि क्योंकि हमारा काम शराब का था तो पीने वालों का रवैया भी हमारे साथ वैसा ही था। वो लोग अक्सर मुझसे कहते कि मुझे स्नैक्स लाकर दो, मैं उस समय बच्चा था तो उनकी बात माननी पड़ती थी, लेकिन अक्सर लोग मुझे इस काम के बदले कुछ न कुछ पैसे दे देते थे। उन्होंने इस पैसे से अपने लिए किताबें खरीदीं, लेकिन कभी अपनी पढ़ाई नहीं रुकने दी। इसी मेहनत और लगन के चलते उनके 10वीं में 95 फीसदी और 12वीं में 90 फीसदी नंबर आए। इसके बाद साल 2006 में मेडिकल प्रवेश परीक्षा दी तो यहां भी सीट मिल गई। उन्होंने MBBS की पढ़ाई मुंबई के सेठ GS Medical College से की जहां उन्हें बेस्ट स्टूडेंट के अवॉर्ड से नवाजा गया।
बचपन से ही बड़ा अफसर बनने का देखा था सपना
डॉक्टरी पूरी करने के बाद राजेंद्र के मन में समाज के लिए और भी बेहतर कर पाने का सपना जागा तो उन्होंने UPSC की तैयारी शुरू की। Union Public Service Commission परीक्षा में पहले उन्हें Indian Police Service कैैैैैडर मिला। इसके बाद फिर अगले प्रयास में साल 2013 में उन्हें IAS कैडर मिल गया। वर्तमान में डॉ. राजेंद्र भरुड़ महाराष्ट्र के नंदूरबार जिले के District Collector हैं। IAS बनने के बाद उन्होंने अपनी मां को समर्पित एक किताब भी लिखी है। अब उनके परिवार में उनकी मां और पत्नी के अलावा एक बच्चा है। डॉ राजेंद्र कहते हैं कि मुझे ऐसा लगता है कि आदमी अगर अपनी परिस्थितियों को ज्यादा न सोचते हुए कड़ी मेहनत से प्रयास करता है तो वो कुछ भी हासिल कर सकता है।

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